
रघुनंदन का दशहरा

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खर दूषण सम बलवान मेरे,
कोई इनको नहीं है मार सका|
वध किया है जो इन दोनो का,
नारायण ने अवतार लिया|
तामस शरीर यह मेरा है,
सो भजन भाव हो सकता नहीं|
हठ बल से उनसे बैर करूँ,
मुक्ती का केवल मार्ग यही|
बस यही सोच दसकंधर ने,
जग जननी को फिर हर लाया|
बैदेही के संग रावण ने,
खुद काल को न्योता दे आया|
पुल बाँध लिया करुणानिधि ने,
जलनिधि के पार चले आए|
विध्वंस करने उस लंका का,
संग बानर भालू भी आए|
धर्म पर विजय दिलाने को,
अधर्म को सदा हटाने को|
सुर, धेनु, विप्र और मुनियों को,
सुखवृष्टि सदा पहुँचाने को |
नर-रूप में नारायण,
नर-रूप में नारायण आए |
रावण जो अधम - अभिमानी था ,शिव परम भक्त और ज्ञानी था |
पर अहंकार के कारण ही,
निज कुल को नष्ट कराया था|
श्री रामचन्द्र और रावण का,
लंका में भीषण युद्ध हुआ |
रावण ने तब रणभूमी में,
माया, छल बल सब दिखलाया|
बार-बार सिर कटने पर,
जब काल के मुख में ना आया|
था नाभि कुण्ड में अमृत उसके,
प्रभु समझ गए उसकी माया|
जब इक्तीस बाज तजे प्रभु ने,
तब रावण प्राण तजा रण में|
इस भाँति युद्ध में रघुपति ने,
लंकापति को हराया था|
अधर्म, अनीति करने का फल,
सारे जग को दिखलाया था|
इस पर्व दशहरा में मिल सब,
छल कपट दंभ का त्याग करें|
और ऐसे श्री रघुवर का हम सब ,
आओ मिल गुड गान करें |